ज़ीना ज़ीना उतर रही है रात
बुन रही हूँ रेशम ओ अतलस में टूटे हुए दिल की बात|
सबा के साथ गुज़रती है मौज-ए-दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार,
आज भी कर रही हूँ जल्वा-गाह-ए-विसाल में तेरा इंतज़ार|
तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा,
दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा|
मैं कब तन्हा हुई थी याद होगा…
तुम्हारा फ़ैसला था याद होगा…
वो ख़त पागल हवा के आँचलों पर …
किसने तुम्हे लिखा था याद होगा …
मुलाकातें अधूरी रही,
मुकम्मल करुँगी ये वादा रहा…
तन्हाइयों से भी मैं तेरी,
बातें करुँगी ये वादा रहा…